Thursday 28 August, 2008

नहीं पता था कि ईसाई इतने फटेहाल भी होते हैं

धारणाएं कब आपको गुलाम बना लेती हैं, पता ही नहीं चलता। अभी तक ईसाई से मन में गोवा या केरल की किसी मैडम या मिस्टर डी-कोस्टा की छवि बनती रही है जिसने कुछ अंग्रेज़ी किस्म के कपड़े पहन रखे हों। शायद फिल्मों ने यह धारणा बनाई हो या आसपास के ईसाई परिवारों ने। इसलिए आज सुबह जब मैंने इंडियन एक्सप्रेस में यह तस्वीर देखी तो एकबारगी झटका-सा लगा। मन में पहली प्रतिक्रिया यही उठी कि अरे, ये तो गरीब आदिवासी हैं, ईसाई कैसे हो सकते हैं। लेकिन हकीकत तो यही है कि इनकी आदिवासी पहचान को गौण कर इन्हें महज नफरत का निशाना बनाया जा रहा है जिसके लिए ज़रूरी है कि इन भूखे-नंगे फटेहाल लोगों को ईसाई माना जाए। तो यह तस्वीर है उड़ीसा के ईसाइयों की जिनके घर विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने जला दिए हैं और वे फुलबानी की पहाड़ियों में शरण लेने के लिए भागे जा रहे हैं।
फोटो पार्थ पॉल की, सौजन्य इंडियन एक्सप्रेस का

13 comments:

अनुनाद सिंह said...

ये भोले-भाले लोग क्या जाने "मजहबी साम्राज्यवाद" का खेल? इन्हें तो कोई चतुर भेड़िया 'सेवा' का भ्रम फ़ैलाकर या कोई छोटा सा लालच दिखाकर इनके गले में क्रास लटका देता है। इसके बाद इन्हें अपने ही सगों से नफ़रत करने, अपनी ही जड़ें काटने, अपनी संस्कृति को भरा-बुरा कहने का प्रशिक्षण दिया जाता है। इन नादान लोगों को क्या पता कि ये ही 'सेवाव्रती' लोग किसी देश में गुलामी फ़ैलाने के लिये 'अग्रदूत' रहे हैं और अब भी उसी काम में लगे हुए हैं।

जागो भारत, जागो!

Abhishek Ojha said...

ऐसे बहुत से गरीब-आदिवासी-इसाई मैंने भी देखा है... रांची के आस पास के ऐसे कई गाँवों में हम स्कूल की तरफ़ से कभी-कभी जाते थे. मैं इसाई स्कूल में ही पढता था... पर तब इतना नहीं सोचना होता था. बस गरीबी ही दिखती कभी धर्म नहीं दीखता था.

Unknown said...

यदि गरीबी और जातिप्रथा न होती तो भारत में न ईसाई धर्म पनपता ना ही इस्लाम… और जब इन्हें रोकने की कोशिश की जायेगी तो एक "तूफ़ान" उठ खड़ा होगा… जो खुद हिन्दुओं द्वारा ही उठाया जायेगा। है ना मजेदार बात?

Anil Pusadkar said...

anil jee kya kisi ki seva use apne dharma ka banane ke baad hi ki ja sakti hai.main bhi isaai school me padha hun,mera bhatija aur bhatiji bhi usi school me padh rahe hain,lekin jis tarah padhai ka dharma se koi lena-dena nahi hota usi tarah seva ka bhi nahi hona chahiye.agar aisa hota hai to aadhi samasya waise hi khatam ho jayegi.lekin aisa ho nahi raha hai.kya sudama ki seva samuel bane bina nahi ho sakti.

राज भाटिय़ा said...

अनिल जी यह कुछ भी नही ??? जनाब जरा ब्रजील ओर अफ़्रीका के देशो मे भी नजर दोडाओ.. ईसाई.... यह सिर्फ़ हमारी मन्सिकता हे आप पोलेण्ड, हगंरी ,रोमनिया ओर रुस मे देख सकते हे यह कितने अमीर हे.
धन्यवाद

दिनेशराय द्विवेदी said...

गरीबी और सिर्फ गरीबी ही रोग है, उस से मुक्ति पा लीजिए फिर सभी दूसरी बीमारियाँ अपने आप गायब हो जाएंगी। बहुत सी तो उस ओर से ध्यान हटाने को पैदा की जाती हैं।
पर यह दर्दनाक बात है, मजेदार नहीं, चिपलूनकर जी!

Sandeep Singh said...

एक तीर से दो निशाने साधे गए....एक सूत्र गरीबी और धर्म परिवर्तन के रिश्ते का क्रास पहने था तो दूसरा मजबूर और मजलूम भाइयों पर त्रिशूल का वार कर रहा था...पर हर कोई एक ही सिरा थामता दिखा...जहां तक मैं मूढ़ समझ सका ?

Sandeep Singh said...

एक तीर से दो निशाने साधे गए....एक सूत्र गरीबी और धर्म परिवर्तन के रिश्ते का क्रास पहने था तो दूसरा मजबूर और मजलूम भाइयों पर त्रिशूल का वार कर रहा था...पर हर कोई एक ही सिरा थामता दिखा...जहां तक मैं मूढ़ समझ सका ?

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

प्रथम टिप्पणी बहुत कुछ कहती है। अब हम क्या कहें?

Nitish Raj said...

गरीबी क्या क्या ना कराए। वैसे सुरेश जी और अनुनाद जी ने बाकी कह दिया।

PD said...

हम भी पहले कमेंट पर ही अटक गये.. भगवान और धर्म को नहीं मानता हूं.. पिछले 5 सालों से मंदिर के अंदर भी नहीं गया हूं.. मगर इस तरह की दोहरी मानसिकता से खून खौल उठता है.. कभी कभी डर लगता है की ऐसी मानसिकता कहीं कट्टर हिंदू में मुझे तब्दील ना कर दे..

bhuvnesh sharma said...

शर्म का विषय है कि हमारे हिंदू नेता कभी इनकी गरीबी के बारे में नहीं सोचते.....इन लोगों की याद उन्‍हें तभी आती है जब ये ईसाई बन जाते हैं..तब ये स्‍यापा करते हैं कि धर्मांतरण हो रहा है.
यदि इनके लिए ईमानदारी से प्रयास किये जायें तो धर्मांतरण जैसी चीजों का रोना ना रोना पड़े.
और ईसाई मिशनरीज का तो कहना ही क्‍या...उनके लिए तो ये बस शिकार हैं...जिनको एक बार ईसाई बनाकर इनका खात्‍मा कर देना है...भला ये भी कब चाहते हैं आदिवासियों का

डा. अमर कुमार said...

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राजनीति क्या इंसान कहलाने वाले जीव को इतना कुत्ता बना देती है, कि धर्म के नाम पर चल रही इस अधर्मनीति से आँखें मूँदे रहती है । हमारा अरण्य रूदन उनको क्योंकर हिलाये भला ?