Saturday 2 February, 2008

पार्टनर को पूरक नहीं, प्रतिस्पर्धी मान बैठते हैं हम

कमल और माधुरी को तो आप जानते ही होंगे। अरे, वही मियां-बीवी/ प्रेमी-प्रेमिका/ पार्टनर जो अक्सर रात के 2-2, 3-3 बजे झगड़ा करके अड़ोस-पड़ोस वालों की नींद हराम कर देते हैं। शुक्रवार-शनिवार की रात को बिला नागा चिल्ल-पों मचाते हैं। और, दोनों झगड़ा भी क्या झकास करते हैं!! लगता है आज ज़रूर कोई मरखप जाएगा। इनके झगड़े की तल्खी से मैं अच्छी तरफ वाकिफ हूं क्योंकि कमल अचानक एक रात साढ़े तीन बजे मेरे घर पर रोता हुआ आया था। कमीज़ कॉलर से नीचे तक फट गई थी। एक बटन को छोड़कर बाकी सारे टूटे हुए थे। आते ही फट पड़ा – भाई बचा लो, नहीं तो आज अनर्थ हो जाएगा। या तो मैं माधुरी को मार डालूंगा या वो मेरी जान ले लेगी।

यह वाकया उनके प्रेमी-प्रेमिका से मियां-बीवी बनने के महज छह महीने बाद का है। वैसे इसके बाद लगभग सात साल बीत गए हैं और दोनों अभी तक साथ ही रह रहे हैं। लेकिन उनके रिश्तों की सारी ऊष्मा चुक गई है। दोनों के चेहरे छुहारे की तरह सूखते जा रहे हैं। कमल और माधुरी में अक्सर जो तकरार होती है, उसमें कमल बड़े शांत मन से कई सालों से लगातार एक ही बात कह रहा है। वह यह कि – देखो, माधुरी! तुम्हारा और मेरा स्वभाव एकदम अलग है। हम बेर और केर की तरह हैं। तुमने रहीम का दोहा तो सुना ही होगा कि, कहि रहीम कैसे निभे, बेर-केर को संग, ये डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग। बेर और केले के पेड़ों का एक साथ रहना संभव नहीं है क्योंकि बेर ज़रा-सा भी हिलती या लहराती है तो उसके कांटे केले के पत्ते को तार-तार कर डालते हैं।

माधुरी पलटकर कहती है – बेर मैं नहीं, तुम हो। तुम्हीं लगातार मुझको काटते रहते हो। कमल कहता है – मैं यह नहीं कह रहा है कि तुम बेर और मैं केर हूं। मेरा तो बस यही कहना है कि हम दोनों लगातार एक-दूसरे को काट रहे हैं। इसलिए हमारा साथ रहना किसी के हित में नहीं है। न तो मेरे और न ही तुम्हारे। ऐसे झगड़ों के बाद अक्सर दोनों में रोना-धोना होता है। माधुरी ही अक्सर मामले को संभालती है। कहती है – चलो छोड़ो, तुम कभी समझोगे नहीं। मुझे एक ज़ोरदार झप्पी दो और हम पहले की तरह सामान्य हो जाते हैं। घंटों की लड़ाई के बाद मामला शांत होता है। लेकिन हफ्ते, दस दिन बाद फिर किसी न किसी बहाने दोनों तलवार लेकर एक-दूसरे के सामने खड़े हो जाते हैं।

लेकिन इधर करीब दो महीना होने को आया। कभी मेरी रातों की नींद में खलल नहीं पड़ा तो एक दिन शनिवार शाम को नीचे किसी काम से निकले कमल को मैंने पकड़ ही लिया। चंद इधर-उधर की बातों के बाद मैं सीधे मुद्दे पर आ गया। कमल बोला – देखिए गलती मेरी ही थी। यूं ही एक दिन सुबह उठा तो अचानक मुझे अहसास हुआ कि मैं कहीं न कहीं अंदर से अपने पार्टनर को अपना पूरक नहीं, बल्कि प्रतिस्पर्धी मानता रहा हूं। यकीनन हम दोनों के स्वभाव अलग हैं। लेकिन हम बेर-केर नहीं हैं। हम तो सांचे के दो हिस्सों की तरह हैं। खज़ाने के फटे हुए नक्शे के दो हिस्से हैं। गृहस्थी की गाड़ी के दो पहियों की बात पुरानी हो गई। हम तो दरांतों वाले गियर के वो ह्वील हैं जो एक दूसरे से गुंथकर चलते हैं तभी गाड़ी सरपट दौड़ती है।

किसी भी सूरत में हम एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी तो हो ही नहीं सकते। हमारी इमोशनल ज़रूरतें एक हैं। हां, उनके इजहार के तरीके भिन्न हैं। ये भिन्नताएं हमने नहीं गढ़ी हैं। ये हमें प्रकृति से मिली हैं। इन भिन्नताओं को स्वीकार करके, उनका सम्मान करते हुए अगर हम एक-दूसरे की अपेक्षाओं को पूरा करेंगे तो चीखने-चिल्लाने की नौबत कभी नहीं आएगी। कमल एक बार खुल गया तो बोलता ही जा रहा था। दूसरी बात यह भी है कि हम लोगों को लग गया है कि हम एक-दूसरे से अलग होकर कभी खुश नहीं रह सकते। अगर हमारी मुक्ति है तो वह हमें एक साथ रहकर ही मिलेगी, अलग-अलग रहकर नहीं।

बीच में माधुरी फेमिनिस्ट बनती जा रही थी। लेकिन अब वह भी मानने लगी है कि समाज में नारी की स्थिति खास उत्पादन व्यवस्था की वजह से है और उत्पादन स्थितियों के बदलने से ही नारी की मुक्ति हो पाएगी। कमल की बातें सुनकर न जाने क्यों मुझे अंदर से बहुत शांति महसूस हो रही थी। इसलिए नहीं कि अब रात में मेरी नींद में खलल नहीं पड़ेगा, बल्कि इसलिए कि दो प्यार करनेवाले बंदे एक बार फिर एक-दूजे के होते जा रहे थे। ऊपरवाला इनकी जोड़ी को हमेशा सलामत रखे।
मिलती-जुलती पुरानी पोस्ट: अर्द्धनारीश्वर और सोलमेट की तलाश

6 comments:

Anita kumar said...

हम भी दुआ करते है कि इन दोनों की जोड़ी प्यार से लंबे समय तक सलामत रहे

सागर नाहर said...

बहुत गहरी बात कह दी आपने.. कईयों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा शायद।

Unknown said...

इज़हार के तरीके,प्रकृति,भिन्नताएं :बहुत सही।
संयोग से कल ही John Gray की नयी किताब Why Mars and Venus collide को भी पलटा गया था ।
Soul Mate वाला विचार भी रोचक है।

Tarun said...

इतनी प्यार मोहब्बत से तो हम वाकिफ नही हैं लेकिन अभी कुछ दिनों पहले पढ़ा था कि रिसर्च के अनुसार जो पति पत्नी ज्यादा लड़ते हैं वो ज्यादा लंबा जीते हैं, ध्यान देने वाली बात है जिक्र ज्यादा लड़ने का है कुढ़ने का नही।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

BADE KAAM KI BAATEN HAIN.
AMAL KE YOGYA.
SAATH JEENE KALA SIKHATEEN BAATEN.
DHANYAVAD...

शायदा said...

बहुत अच्‍छा लिखा आपने। बेर-केर को हमेशा ही दुआओं की ज़रूरत रहेगी क्‍योंकि जितना सच उनका झगड़ा है उतना ही सत्‍य उनका हमेशा साथ रहना भी। तो बस दुआएं करते रहिए।