Sunday 12 August, 2007

कमरा नंबर-129 के बालकृष्ण का आखिरी खत

आईआईटी, मुंबई के एक और छात्र ने खुदकुशी कर ली। एक बार फिर मैं परेशान हो गया। सोचने लगा कि आईआईटी के पवई कैंपस में बने हॉस्टल नंबर- 12 के 129 नंबर कमरे में रह रहे बालकृष्ण गुप्ता ने क्यों ये फैसला लिया होगा। बालकृष्ण कानपुर के एक खाते-पीते घर का रहनेवाला था। साल भर पहले ही वह इन-ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में पीएचडी करने के लिए आईआईटी, मुंबई आया था। वह काफी कुशाग्र विद्यार्थी था और संस्थान के सबसे अच्छे प्रोफेसरों में गिने जानेवाले एम एस बालकृष्णा उसके गाइड थे। शुक्रवार को दोस्तों के बुलाने पर वह डिनर के लिए नहीं आया और शनिवार को शाम 3.30 बजे को पंखे से लटकती उसकी लाश मिली। मरने के ठीक पहले किसी को अपनों की कितनी याद आती है और वह ज़िम्मेदारियां पूरा न कर पाने से कितनी आत्मग्लानि महसूस करता होगा, इसका एक और सबूत है 27 साल के नौजवान बालकृष्ण गुप्ता का ये सुसाइड नोट, जिसमें उसने अलविदा कहने से पहले मम्मी-पापा और छोटी बहन प्रीति से दिल की बातें कही हैं।

मेरी मम्मी, मैं जा रहा हूं। परेशान मत होना। अगली बार फिर आपका ही बेटा बनूंगा। इस जन्म में मैं कुछ नहीं दे सका आपको, बस लिया ही आपसे। अपना और जॉर्ज का ख्याल रखना। मेरा यहां मन नहीं लग रहा था और वापस भी नहीं आ सकता था। प्लीज़, इस बार मुझे माफ कर दो। अगली बार मैं बहुत खुश रखूंगा। अपना ख्याल रखना, प्लीज़....

सॉरी पापा, अपने बेटे की लास्ट बात मान लेना। प्लीज़, मेरी मम्मी और जॉर्ज का ख्याल रखना। प्लीज़, प्लीज़, प्लीज़....

प्रीति, अपना ख्याल रखना। खूब पढ़ना। तुम्हारा भाई आज भी तुम सब से बहुत प्यार करता है और दीदी से कहना कि वो अपना ख्याल रखे, अच्छे से रहे।

बालकृष्ण के इस आखिरी खत को पढ़कर बरबस आंख में आंसू आ गए। मम्मी और पापा से वह कौन से जॉर्ज की बात कर रहा है, पता नहीं। लेकिन इस खत को देखकर मुझे अपने एक अज़ीज़ के करीब 17 साल पुराने चार खत याद आ गए, जो आत्महत्या की दूसरी कोशिश में अपने जन्मदिन के ठीक चार दिन पहले 24 सितंबर को उसने अम्मा-बाबूजी, बड़े भाई, पत्नी और दोस्तों के नाम लिखे थे। वो खत मैंने आज भी संभाल कर रखे हैं। मेरा वह अज़ीज़ आज भी ज़िदा है। जिंदादिल है। उसके खत कभी बाद में। अभी तो बालकृष्ण के मां-बाप और बहन को भगवान इस घनघोर दुख को सहने की ताकत दे, यही मेरी कामना है। आप भी यही दुआ करें।

5 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

बहुत ही दुख भरी दस्‍तान सुनाई आपने, समस्‍या तो हर व्‍यक्ति के जीवन के आती है। किन्‍तु समस्‍या से डर जाना और मर जाना बड़ाई नही है। यह कायरता है।

खैर जो भी हुआ, मृतक आत्‍मा को शान्ति और शोक संतप्‍त पर‍िवार साहस ईश्‍वर प्रदान करें।

Manish Kumar said...

बेहद दुखद घटना है। सुसाइड नोट पढ़कर और भी खराब लगा। आज तो बंगलोर में चार सहेलियों ने भी आत्म हत्या का प्रयास किया। उनमें से भी एक बची। इस उम्र में दोस्त ही ऍसा करने से विमुख कर सकते हैं....पर दुख इतना बढ़ जाता होगा कि आदमी को सब से कटने के बजाए कोई रास्ता नहीं सूझता होगा।
क्या किया जाए बस संवेदना प्रकट कर सकते हैं !

Udan Tashtari said...

सुसाइड नोट पढ़कर अजीब सा लगने लगा.आखिर ऐसा क्या हो जाता है कि व्यक्ति को समस्त रास्ते बंद नजर आते हैं. बहुत अफसोस जनक.

इश्वर उसके परिवार को यह दुख झेलने की शक्ति प्रदान करे.

ling_bhedi_astra said...

anilji kaafeedard hai is lekh me ....main bhi roh pada...aur aap bhi?

ghughutibasuti said...

आपका लेख पढ़ा । एक दुखद घटना के बारे में पढ़ा । मन द्रवित तो हुआ ही , पर कुछ समय पहले ऐसे ही एक आई आई टी के छात्र की आत्महत्या पर लिखा लेख व उस लेख व उसपर हुई टिप्पणियों पर अपनी लिखी कविता कायर याद आ गई ।
लिंक ...http://ghughutibasuti.blogspot.com/2007/05/blog-post_15.html
ये है ।
घुघूती बासूती